नयन क्यों भीगे

मन के उद्गारों को कलम उचित शब्द अक्सर दे नहीं पाती

नयन क्यों भीगे, यह बात कलम कभी समझ नहीं पाती

धूप-छांव तो आनी-जानी है हर पल, हर दिन जीवन में

इतनी सी बात क्यों इस पगले मन को समझ नहीं आती