नदी हो जाना

बहती नदी के

सौन्दर्य की प्रशंसा करना

कितना सरल है]

और  नदी हो जाना

उतना ही कठिन।

+

नदी

मात्र नदी ही तो नहीं है]

यह प्रतीक है]

एक लम्बी लड़ाई की,

बुराईयों के विरुद्ध

कटुता और शुष्कता के विरुद्ध

निःस्वार्थ भावना की

निष्काम भाव से

कर्म किये जाने की

समर्पण और सेवा की

विनम्रता और तरलता की।

अपनी मंज़िल तक पहुंचने के लिए

प्रकृति से युद्ध की।

हर अमृत और विष पी सकने वाली।

नदी

कभी रुकती नहीं

थकती नहीं।

मीलों-मील दौड़ती

उंचाईयों-निचाईयों को नापती

विघ्न-बाधाओं से टकराती

दुनिया-भर की धुल-मिट्टी

 

अपने अंक में समेटती

जिन्दगी बिखेरती

नीचे की ओर बढ़कर भी

अपने कर्मों सेे

निरन्तर

उपर की ओर उठती हुई

- नदी-

कभी तो

रास्ते में ही

सूखकर रह जाती है

और कभी जा पहुंचती है

सागर-तल तक

तब उसे कोइ नहीं पहचानता

यहां

मिट जाता है

उसका अस्तित्व।

नदी समुद्र हो जाती है

बदल जाता है उसका नाम।

समुद्र और कोई नहीं है

नदी ही तो है

बार-बार आकर

समुद्र बनती हुई

चाहो तो तुम भी समुद्र हो सकते हो

पर इसके लिए पहले

नदी बनना होगा।