न मैं जानूं न तुम जानो फिर भी अच्छे लगते हो

न मैं जानूं न तुम जानो फिर भी अच्छे लगते हो

न तुम बोले न मैं, मुस्कानों में क्यों बातें करते हो

अनजाने-अनपहचाने रिश्ते अपनों से अच्छे लगते हैं

कदम ठिठकते, दहलीज रोकती, यूं ही मन चंचल करते हो