धूप ये अठखेलियां हर रोज़ करती है

पुरानी यादें यूं तो मन उदास करती हैं

पर जब कुछ सुनहरे पल तिरते हैं

मन में नये भाव खिलते हैं

कोहरे में धुंधलाती रोशनियां

चमकने लगती हैं

कुछ बूंदे तिरती हैं

झुके-झुके पल्लवों पर

आकाश में नीलिमा तिरती है

फूल लेने लगते हैं अंगडाईयां

मन में कहीं आस जगती है

धूप ये अठखेलियां हर रोज़ करती है