धूप-छांव में उलझता मन

कोहरे की चादर

कुछ मौसम पर ,

कुछ मन पर।

शीत में अलसाया-सा मन।

धूप-छांव में उलझता,

नासमझों की तरह।

बहती शीतल बयार।

न जाने कौन-से भाव ,

दबे-ढके कंपकंपाने लगे।

कहना कुछ था ,

कह कुछ दिया,

सर्दी के कारण

कुछ शब्‍द अटक से गये थे,

कहीं भीतर।

मूंगफ़ली के छिलके-सी

दोहरी परतें।

दोनों नहीं

एक तो उतारनी ही होगी।