धूप-छांव तो आनी-जानी है हर पल

सोचती कुछ और हूं, समझती कुछ और हूं, लिखती कुछ और हूं

बहकते हैं मन के उद्गार, भीगते हैं नमय, तब बोलती कुछ और हूं

जानती हूं धूप-छांव तो आनी-जानी है हर पल, हर दिन जीवन में

देखती कुछ और हूं, दिखाती कुछ और हूं, अनुभव करती कुछ और हूं