द्वार पर सांकल लगने लगी है

उत्‍सवों की चहल-पहल अब भीड़ लगने लगी है

अपनों की आहट अब गमगीन करने लगी है

हवाओं को घोटकर बैठते हैं सिकुड़कर हम

कोई हमें बुला न ले, द्वार पर सांकल लगने लगी है