दीप तले अंधेरा ढूंढते हैं हम

रोशनी की चकाचौंध में अक्सर अंधकार के भाव को भूल बैठते हैं हम

सूरज की दमक में अक्सर रात्रि के आगमन से मुंह मोड़ बैठते हैं हम

तम की आहट भर से बौखलाकर रोशनी के लिए हाथ जला बैठते हैं

ज्योति प्रज्वलित है, फिर भी दीप तले अंधेरा ही ढूंढने बैठते हैं हम