तू लौट जा अपने ठौर

हे पंछी, प्रकृति प्रदत्त स्रोत छोड़कर तू कहां आया रे !

ये मानव निर्मित स्रोत हैं यहां न जल न छाया रे !

तृषित जग, तृषित भाव, तृषित मानव मन हैं यहां

तू लौट जा अपने ठौर,! न कर यहां जीवन जाया रे !