जीवन संवर-संवर जाता है

बादलों की ओट से

निरखता है सूरज।

बदलियों को

रँगों से भरता

ताक-झाँक

करता है सूरज।

सूरज से रँग बरसें

हाथों में थामकर

जीवन को रंगीन बनायें।

लहरें रंग-बिरँगी

मानों कोई स्वर-लहरी

जीवन-संगीत संवार लें।

जब मिलकर हाथ बंधते हैं

तब आकाश

हाथों में ठहर-ठहर जाता है।

अंधेरे से निपटते हैं

जीवन संवर-संवर जाता है।