जिजीविषा के लिए

 

 

रंगों की रंगीनियों में बसी है जि़न्दगी।

डगर कठिन है,

पर जिजीविषा के लिए

प्रतिदिन, यूं ही

सफ़र पर निकलती है जिन्‍दगी।

आज के निकले कब लौटेंगे,

यूं ही एकाकीपन का एहसास

देती रहती है जिन्दगी।

मृगमरीचिका है जल,

सूने घट पूछते हैं

कब बदलेगी जिन्दगी।

सुना है शहरों में, बड़े-बडे़ भवनों में

ताल-तलैया हैं,

घर-घर है जल की नदियां।

देखा नहीं कभी, कैसे मान ले मन ,

दादी-नानी की परी-कथाओं-सी

लगती हैं ये बातें।

यहां तो,

रेत के दानों-सी बिखरी-बिखरी

रहती है जिन्दगी।