जब प्रेम कहीं से मिलता है

अनबोले शब्दों की चोटें

भावों को ठूंठ बना जाती हैं।

कब रस-पल्लव झड़ गये

जान नहीं पाते हैं।

जब प्रेम कहीं से मिलता है,

तब मन कोमल कोंपल हो जाता है।

रूखे-रूखे भावों से आहत,

मन तरल-तरल हो जाता है।

बिखरे सम्बन्धों के तार कहीं जुड़ते हैं।

जीवन हरा-भरा हो जाता है।

मुस्काते हैं कुछ नव-पल्ल्व,

कुछ कलियां करवट लेती हैं,

जीवन इक खिली-खिली

बगिया-सा हो जाता है।