जब एक तिनका फंसता है

दांत में

जब एक तिनका फंस जाता है

हम लगे रहते हैं

जिह्वा से, सूई से,

एक और तिनके से

उसे निकालने में।

 

किन्तु , इधर

कुछ ऐसा फंसने लगा है गले में

जिसे, आज हम

देख तो नहीं पा रहे हैं,

जो धीरे-धीरे, अदृश्य,

एक अभेद्य दीवार बनकर

घेर रहा है हमें चारों आेर से।

और हम नादान

उसे दांत का–सा तिनका समझकर

कुछ बड़े तिनकों को जोड़-जोड़कर

आनन्दित हो रहे हैं।

किन्तु बस

इतना ही समझना बाकी रह गया है

कि जो कृत्य हम कर रहे हैं

न तो तिनके से काम चलने वाला है

न सूई से और न ही जिह्वा से।

सीधे झाड़ू ही फ़िरेगा

हमारे जीवन के रंगों पर।