छोड़ के देख घूंट

कभी शाम ढले घर लौट, पर छोड़ के लालच के दो घूंट

द्वार पर टिकी निहारती दो आंखें हर पल पीती हैं दो घूंट

डरते हैं, रोते भी हैं पर  महकते भी हैं तेरी बगिया में फूल।

जिन्दगी सुहानी है हाथ की तेरे बात है बस छोड़ के देख घूंट।