चाहतों का अम्बार दबा है

मन के भीतर मन है, मन के भीतर एक और मन

खोल खोल कर देखती हूं कितने ही तो हो गये मन

इस मन के किसी गह्वर में चाहतों का अम्बार दबा है

किसको रखूं, किसको छोड़ूं नहीं बतलाता है रे मन।