चांदनी को तारे खिल-खिल हंस रहे

चांद से छिटककर चांदनी धरा पर है चली आई                      

पगली-सी डोलती, देखो कहां कहां है घूम आई

देख-देखकर चांदनी को तारे खिल-खिल हंस रहे

रवि की आहट से डर,फिर चांद के पास लौट आई