गुनगुनाता है चांद

शाम से ही

गुनगुना रहा है चांद।

रोज ही की बात है

शाम से ही

गुनगुनाता है चांद।

सितारों की उलझनों में

वृक्षों की आड़ में

नभ की गहराती नीलिमा में

पत्‍तों के झरोखों से,

अटपटी रात में

कभी इधर से,

कभी उधर से

झांकता है चांद।

छुप-छुपकर देखता है

सुनता है,

समझता है सब चांद।

कुछ वादे, कुछ इरादे

जीवन भर

साथ निभाने की बातें

प्रेम, प्‍यार के किस्‍से,

कुछ सच्‍चे, कुछ झूठे

कुछ मरने-जीने की बातें

सब जानता है

इसीलिए तो

रोज ही की बात है

शाम से ही

गुनगुनाता है चांद