गलती से मिस्टेक हो गई

जब फ़ेसबुक पर नया-नया खाता खोला तब बड़ा शौक था तरह तरह की फ़ोटो पोस्ट करने का। गूगल से उठाये गये सूक्ति वाक्य, कोई चित्र आदि। बड़ा आनन्द आता था। जब भी कोई मैत्री संदेश मिलता, मन यूं खिल उठता जैसे पता नहीं कौन-सी निधि मिल गई। निधि की वास्तविकता का तो तब पता लगता जब महोदय अथवा महोदया संदेश बाक्स में आकर अपने मन की बातें कहने लगते और हम ब्लाॅक की ओर भागते। किन्तु एक बार की लत कहां छूटती है। लग गई तो लग गई।

फिर मिले कुछ साहित्यिक मंच। और हम लगे कविताएं लिखने। यहां तक तो ठीक था किन्तु जब कविताएं लिख रहे हैं तो सराहनात्मक प्रतिक्रियाएं भी आने लगीं और हम भी औरों की रचनाओं पर प्रतिक्रियाएं लिखने लगे।

आप कहेंगे इसमें नया क्या, सबके साथ ही ऐसा ही तो हुआ होगा।

किन्तु हमारे साथ कुछ अलग और नया हुआ।

हमें अपने हिन्दी टंकण बड़ा गुरूर था। 1970 से रैमिंगटन टाईपराईटर पर सीखी हिन्दी टाईपिंग अब तक जीवन्त थी अंगुलियों में, और कम्प्यूटर के अंग्रेज़ी के की बोर्ड पर आराम से हिन्दी टाईपिंग कर लेते थे।

 किन्तु हुआ यूं कि हमारे हिन्दी फॅ़ांट ने हमें दे दिया धोखा। सीधे टंकण हो नहीं पा रहा था, इसलिए हम आ गये काॅपी-पेस्ट पर। अब काॅपी-पेस्ट तो आप सब जानते ही हैं। इधर से उठाया, उधर लगा दिया, उधर से उठाया इधर लगा दिया। वल्र्ड की फ़ाईल में लिखा, कन्वर्टर में पेस्ट किया, और फिर उठा कर फ़ेसबुक पर पेस्ट। किन्तु पेस्ट करते समय बहुत बार धोखा भी होता है और देखिए ऐसे ही धोखे जो मेरे साथ हुए।

बस, यहीं हम उलझे।

मैंने लिखा ‘‘मेरी रचना की आत्मीय सराहना के लिए आपका आभार। ’’

किन्तु काॅपी-पेस्ट में रह गया ‘‘मरी रचना के लिए’’

एक बार लिखा ‘‘रचना पर आपकी प्रतिक्रिया’’

बाद में देखा तो पेस्ट था ‘‘ चना पर आपकी प्रतिक्रिया’’

एक बार प्रतिक्रिया की ‘‘ आपकी रचना से मन आनन्दित हुआ’’

और काॅपी -पेस्ट हो गया ‘‘ पकी रचना से मन आनन्दित हुआ ’’

लिखा मैंने ‘‘ आभार , नमन’’, पेस्ट हुआ: ‘‘ भार, नमन’’

मैंने लिखा ‘‘ आपका हार्दिक आभार’’  पेस्ट हुआ ‘‘ पका हार्दिक आभार’’

स्‍वभाव  में तो  हडबडी है एक बार  लिखना था Hello Sir लिख  दिया  Hell Sir

यदि कभी आप सभी मित्रों को मेरी ऐसी प्रतिक्रियाएं मिलें तो कृपया पहला अक्षर जोड़ लीजिएगा।