खुशियों की कोई उम्र नहीं होती

उम्र का तकाज़ा मत देना मुझे,

कि जी चुके अपनी ज़िन्दगी,

अब भगवान-भजन के दिन हैं।

 

जीते तो हैं हम,

पर वास्तव में

ज़िन्दगी शुरु कब होती है,

कहां समझ पाते हैं हम।

कर्म किये जा, कर्म किये जा,

बस कर्म किये जा।

जीवन के आनन्द, खुशियों को

एक झोले में समेटते रहते हैं,

जब समय मिलेगा

भोग लेंगे।

और किसी खूंटी पर टांग कर

अक्सर भूल जाते हैं।

और जब-जब झोले को

पलटना चाहते हैं,

पता लगता है,

खुशियों की भी

एक्सपायरी डेट होती है।

 

या फिर,

फिर कर्मों की सूची

और उम्र का तकाज़ा मिलता है।

 

पर खुशियों की कोई उम्र

 नहीं होती,

बस जीने का सलीका आना चाहिए।