खुले हैं वातायन

इन गगनचुम्‍बी भवनों में भी

भाव रहते हैं

कुछ सागर से गहरे

कुछ आकाश को छूते

परस्‍पर सधे रहते हैं।

यहां भी उन्‍मुक्‍त हैं द्वार,

खुले हैं वातायन, घूमती हैं हवाएं

यहां भी गूंजती हैं किलकारियां ,

हंसता है सावन

बादल उमड़ते-घुमड़ते हैं

हां, यह हो सकता है

कुछ कम या ज्‍़यादा होता हो,

पर समय की मांग है यह सब

कितनी भी अवहेलना कर लें

किन्‍तु हम मन ही मन

यही चाहते हैं

फिर भी

पता नहीं क्‍यों हम

बस यूं ही डरे-डरे रहते हैं।