खाली कागज़ पर लकीरें  खींचता रहता हूं मैं

खाली कागज पर लकीरें 
खींचती रहती हूं मैं।
यूं तो 
अपने दिल का हाल लिखती हूं,
पर सुना नहीं सकती
इस जमाने को,
इसलिए कह देती हूं
यूं ही 
समय बिताने के लिए
खाली कागज पर लकीरें 
खींचती रहती हूं मैं।
जब कोई देख लेता है
मेरे कागज पर 
उतरी तुम्हारी तस्वीर,
पन्ना पलट कर
कह देती हूं,
यूं ही
समय बिताने के लिए
खाली कागज पर
लकीरें
खींचती रहती हूं मैं।
कोई गलतफहमी न 
हो जाये किसी को
इसलिए
दिल का हाल
कुछ लकीरों में बयान कर
यूं ही 
खाली कागज पर 
लकीरें 
खींचती रहती हूं मैं।
पर समझ नहीं पाती,
यूं ही 
कागज पर खिंची खाली लकीरें
कब रूप ले लेती हैं
मन की गहराईयों से उठी चाहतों का
उभर आती है तुम्‍हारी तस्‍वीर , 
डरती हूं जमाने की रूसवाईयों से 
इसलिए 
अब खाली कागज पर लकीरें 
भी नहीं खींचती हूं मैं।