क्यों अनकही बातें नासूर बनकर रहें

मन में कटु भाव रहें, मुख पर हास रहे
इस छल-कपट को कौन कब तक सहे
जो मन में है, खुलकर बोल दिया कर 
क्यों अनकही बातें नासूर बनकर रहें