कौन पापी कौन भक्त कोई निष्कर्ष नहीं

कुछ कथाएं

जिस रूप में हमें

समझाई जाती हैं

उतना ही समझ पाते हैं हम।

ये कथाएं, हमारे भीतर

रस-बस गई हैं,

बस उतना ही

मान जाते हैं हम।

प्रश्न नहीं करते,

विवाद में नहीं पड़ते,

बस स्वीकार कर लेते हैं,

और सहज भाव से

इस परम्परा को आगे बढ़ाते हैं।

कौन पापी, कौन भक्त

कोई निष्कर्ष नहीं निकाल पाते हैं हम।

अनगिन चरित्र और कथाओं में

उलझे पड़े रहते हैं हम।

विशेष पर्वों पर उनकी

महानता या दुष्कर्मों को

स्मरण करते हैं हम।

सत्य-असत्य को

कहां समझ पाये हम।

सत्य और कपोल-कल्पना के बीच,

कहीं पूजा-आराधना से,

कहीं दहन से, कहीं सज्जा से,

कहीं शक्ति का आह्वान,

तो कहीं राम का नाम,

उलझे मस्तिष्क को

शांत कर लेते हैं हम।

और जयकारा लगाते हुए

भीड़ का हिस्सा बनकर

आनन्द से प्रसाद खाते हैं हम।