कोरोना का अनुभव

कोरोना का अनुभव अद्भुत, अकल्पनीय था। पति पहले ही स्वस्थ नहीं थे, मार्च में हुए हृदयाघात के कारण। 28 मई रात्रि पति को ज्वर हुआ। बदलते मौसम में उन्हें अक्सर ज्वर होता है, अपने  डाक्टर को फ़ोन किया तो उन्होंने दवाई दे दी। तीन दिन में बुखार उतर गया। किन्तु कमज़ोरी इतनी बढ़ गई कि अस्पताल हार्ट स्पैश्लिस्ट के पास चैकअप ज़रूरी दिख रहा था। जानते थे कि अस्पताल पहले नैगेटिव रिपोर्ट मांगेगे। इसलिए 2 जून को कोरोना टैस्ट करवाया। दुर्भाग्यवश पाज़िटिव रिपोर्ट आ गई। साथ ही मुझे और मेरे बेटे को भी ज्वर हुआ। उसी दिन हमने टैस्ट करवाया। पति की हालत उसी रात गम्भीर हुई, सुबह पांच बजे एमरजैंसी में एडमिट हुए। मैं, बेटा बाहर खड़े उनकी रिपोर्ट की प्रतीक्षा कर रहे थे। शुरु की सारी रिपोर्टस ठीक रहीं। नौ बज रहे थे। शेष रिपोर्ट्स समय लेकर मिलनी थीं। बेटे के मोबाईल पर आवाज़ आई और पाया कि हम दोनों की रिपोर्ट पाज़िटिव है। हमने मुड़कर नहीं देखा, और अस्पताल से निकल गये। डाक्टर से फोन पर बात की, मिलना तो था ही नहीं, क्योंकि कोविड वार्ड में थे। उनका सोडियम बहुत गिर गया था। बहू की रिपोर्ट नैगेटिव थी, अतः उसे पहले ही मायके भेज दिया जहां वह एकान्तवास हुई। उसका परिवार पिछले माह ही कोविड भुगत चुका था। एक ही दिन में हम हिस्सों में बंट गये।

तीसरे दिन आंचल को भी बुखार हुआ और पोती धारा को भी। बिना टैस्ट ही जान गये कि उन्हें भी कोविड हो गया है। अब सवाल था वापिस कैसे लाया जाये। बेटे का एक मित्र, जिसे कोविड हो चुका था, उन दोनों को घर छोड़कर गया। बस इतना रहा कि मुझे एक ही दिन बुखार रहा। बेटे को दस दिन और धारा और आंचल को चार दिन। बुखार बढ़ता तो कभी तीनों मिलकर धारा की पट्टियां करते तो कभी मैं और आंचल मिलकर बेटे की। खाना बाहर से आने लगा। फल, जूस आदि आंचल के घर से देकर जाते। तीन रात लगातार बिजली जाती रही। नया इन्वर्टर धोखा दे गया। एक फे़स से एक ए. सी. चल रहा था। और हम चारों, मैं, बेटा, बहू और पोती एक ही डबल बैड पर रात काटते। इतनी हिम्मत नहीं कि एक फ़ोल्डिंग बैड लगा लें या नीचे ही बिस्तर बिछा लें।

पांचवे दिन पति का अस्पताल से डिस्चार्ज था। समस्या वही, हम जा नहीं सकते, और और कोविड रोगी को  डिस्चार्ज करवाने और उन्हें लेकर कौन आये। फिर बेटे के मित्र और बहू के पिता ने सब किया। लेकिन चार दिन बाद फिर अस्पताल एडमिट हुए, इस बार हमारे दस दिन बीत चुके थे, और डाक्टर ने कहा कोई बात नहीं, आप लोग आ जाईये। साथ ही बेटे का माइग्रेन शुरु हो गया। बच्चे कब तक छुट्टी लेते। वर्क फ्राम होम ही है किन्तु 8-10 घंटे पी. सी. पर।

अपने मकान मालिक को हमने पहले ही दिन बता दिया था। वे बोल बोले बैस्ट आॅफ़ लक्क। नियमित दूध लेने वाले हम लोग पांच दिन तक दूध लेने नहीं गये। प्रातः लगभग 7 बजे हम 6 परिवार एक साथ दूध लेते हैं। किसी ने नहीं पूछा। दूध वाले ने उनसे पूछा कि उपर की आंटी जी चार-पांच दिन से दूध लेने नहीं आईं, उनके घर में सब ठीक तो है न। फिर दूधवाला अपने-आप ही हमारा दूध, ब्रैड, पनीर रखने लगा।

महीना बीत गया। रिकवरी मोड में तो हैं किन्तु पोस्ट कोविड समस्याएं भी हैं। देखते हैं कब तक जीवन पटरी पर उतरता है।