कुर्सियां

भूल हो गई मुझसे

मैं पूछ बैठी

कुर्सी की

चार टांगें क्यों होती हैं?

हम आराम से

दो पैरों पर चलकर

जीवन बिता लेते हैं

तो कुर्सी की

चार टांगें क्यों होती हैं?

कुर्सियां झूलती हैं।

कुर्सियां झूमती हैं।

कुर्सियां नाचती हैं।

कुर्सियां घूमती हैं।

चेहरे बदलती हैं,

आकार-प्रकार बांटती हैं,

पहियों पर दौड़ती हैं।

अनोखी होती हैं कुर्सियां।

किन्तु

चार टांगें क्यों होती हैं?

 

जिनसे पूछा

वे रुष्ट हुए

बोले,

तुम्हें अपनी दो

सलामत चाहिए कि नहीं !

दो और नहीं मिलेंगीं

और कुर्सी की तो

कभी भी नहीं मिलेंगी।

मैं डर गई

और मैंने कहा

कि मैं दो पर ही ठीक हूँ

मुझे  चौपाया  नहीं बनना।