कुछ सपने बोले थे कुछ डोले थे

 


कागज की कश्ती में

कुछ सपने थे

कुछ अपने थे

कुछ सच्चे, कुछ झूठ थे

कुछ सपने बोले थे

कुछ डोले थे

कुछ उलझ गये

कुछ बिखर  गये

कुछ को मैंने पानी में छोड़ दिया

कुछ को गठरी में बांध लिया

पानी में कश्ती

इधर-उधर तिरती

हिलती

हिचकोले खाती

कहती जाती

कुछ टूटेंगे

कुछ नये बनेंगे

कुछ संवरेंगे

गठरी खुल जायेगी

बिखर-बिखर जायेगी

डरना मत

फिर नये सपने बुनना

नई नाव खेना

कुछ नया चुनना

बस तिरते रहना

बुनते रहना

बहते रहना