कुछ मीठे बोल बोलकर तो देखते

कुछ मीठे बोल

बोलकर तो देखते

हम यूं ही

तुम्हारे लिए

दिल के दरवाज़े खोल देते।

क्या पाया तुमने

यूं हमारा दिल

लहू-लुहान करके।

रिक्त मिला !

कुछ सूखे रक्त कण !

न किसी का नाम

न कोई पहचान !

-

इतना भी न जान पाये हमें

कि हम कोई भी बात

दिल में नहीं रखते थे।

अब, इसमें

हमारा क्या दोष

कि

शब्दों पर तुम्हारी

पकड़ ही न थी।