कुछ तो हुआ होगा

कुछ तो हुआ होगा

जो हाथों में मशालें उठीं

कुछ तो किया होगा

जो सड़कों पर आहें उगीं

कुछ तो जला होगा

जो नारों से गलियां गूंजीं

कुछ तो सहा होगा

जो शहर-शहर भीड़ उमड़ी

 

इतना आसान नहीं लगता मुझे

कि शहर-शहर

किसी एक बात को लेकर

किसी को यूं भड़काया जा सके

युवक ही नहीं

युवतियों को भी उकसाया जा सके

पुस्तकालयों में पढ़ते बच्चे

कैसे सड़कों पर आ बैठे

नहीं जानते हम, नहीं पढ़ते हम

नहीं समझते हम

सुनी-सुनाई, अधकचरी सूचनाओं से

भड़कते हम।

 

बस , कचरा परोसा जा रहा

गली-गली परनाले बहते

हम उसे उंडेल उंडेल कर

नाक सिकुड़ते, भौं मरोड़ते

सच्चाई के पीछे भागते

तो हाथ जलते

कहां से शुरू हो रहा

और कहां होगा अन्त

नहीं जानते हम।