कुछ चमकते सपने बुनूं

जीवन में अकेलापन

बहुत कुछ बोलता है

कभी कभी

अथाह रस घोलता है।

अपने से ही बोलना

मन के तराने छेड़ना

कुछ पूछना कुछ बताना

अपने आप से ही रूठना, मनाना

उलटना पलटना

कुछ स्मृतियों को।

यहां बैठूं या वहां बैठूं

पेड़ों पर चढ़ जाउं

उपवन में भागूं दौड़ूं

तितली को छू लूं

फूलों को निहारूं

बादलों को पुकारूं

आकाश को पुकारूं

फिर चंदा-तारों को ले मुट्ठी में

कुछ चमकते सपने बुनूं

अपने मन की आहटें सुनूं

अपनी चाहतों को संवारू

फिर

ताज़ी हवा के झोंके के साथ

लौट आउं वर्तमान में

सहज सहज।