किरचों से नहीं संवरते मन और दर्पण

किरचों से नहीं संवरते मन और दर्पण 

कांच पर रंग लगा देने से

वह दर्पण बन जाता है।

इंसान मुखौटे ओढ़ लेता है,

सज्जन कहलाता हैं।

किरचों से नहीं संवरते

मन और दर्पण,

छोटी-छोटी खुशियां समेट लें,

जीवन संवर जाता है।