कहां गये वे नेता -वेत्ता

कहां गये वे नेता -वेत्ता

चूल्हे बांटा करते थे।

किसी मंच से हमारी रोटी

अपने हित में सेंका करते थे।

बड़े-बड़े बोल बोलकर

नोटों की गिनती करते थे।

झूठी आस दिलाकर

वोटों की गिनती करते थे।

उन गैसों को ढूंढ रहे हम

किसी आधार से निकले थे,

कोई सब्सिडी, कोई पैसा

चीख-चीख कर हमको

मंचों से बतलाया करते थे।

वे गैस कहां जल रहे

जो हमारे नाम से लूटे थे।

बात करें हैं गांव-गांव की

पर शहरों में ही जाया करते थे।

 

आग कहीं भीतर जलती है

चूल्हे में जलता है दिल

अब हमको भरमाने को

कला, संस्कृति, परम्परा,

मां की बातें करते हैं।

सबको चाहे नया-नया,

मेरे नाम पर लीपा-पोती।

पंचतारा में भोजन करते

मुझको कहते चूल्हे में जा।