कहां गई वह गिद्ध-दृष्टि

बने बनाये मुहावरों के फेर में पड़कर हम यूं ही गिद्धों को नोचने में लगे हैं

पर्यावरणिकों से पूछिये ज़रा, गिद्धों की कमी से हम भी तो मरने लगे हैं

कहां गई हमारी वह गिद्ध-दृष्टि जो अच्छे और बुरे को पहचानती थी

स्वच्छता-अभियान के इस महानायक को हम यूं ही कोसने में लगे हैं