कब छूटेगी यह नाटकबाजी

देह पर पुस्तक-सज्जा से

पढ़ना नहीं आ जाता।

मांग में कलम सजाने से

लिखना नहीं आ जाता।

कपोत उड़ाने भर से

स्वाधीनता के द्वार

उन्मुक्त नहीं हो जाते।

पहले हाथ की बेड़ियां

तो तोड़।

फिर सोच,

कान के झुमके,

माथे की टिकुली,

नाक की नथनी,

और नर्तन मुद्रा के साथ,

इन फूलों के बीच

कितनी सजती हो तुम।