कड़वाहटों को बो रहे हैं हम

गत-आगत के मोह में आज को खो रहे हैं हम

जो मिला या न मिला इस आस को ढो रहे हैं हम

यहां-वहां, कहां-कहां, किस-किसके पास क्या है

इसी कशमकश में कड़वाहटों को बो रहे हैं हम