कच्चे घड़े-सी युवतियां

कच्चे घड़े-सी होती हैं

ये युवतियां।

घड़ों पर रचती कलाकृति

न जाने क्या सोचती हैं

ये युवतियां।

रंग-बिरंगे वस्त्रों से सज्जित

श्रृंगार का रूप होती हैं

ये युवतियां।

रंग सदा रंगीन नहीं होते

ये बात जानती हैं

केवल, ये युवतियां।

हाट सजता है,

बाट लगता है,

ठोक-बजाकर बिकता है,

ये बात जानती हैं

केवल, ये युवतियां।

कला-संस्कृति के नाम पर

बैठक की सजावट बनते हैं]

सजते हैं घट

और चाहिए एक ओढ़नी

जानती हैं सब

केवल, ये युवतियां।

बातें आसमां की करते हैं

पर इनके जीवन में तो

ठीक से धरा भी नहीं है

ये बात जानती हैं

केवल, ये युवतियां।

कच्चे घड़ों की ज़िन्दगी

होती है छोटी

इस बात को

सबसे ज़्यादा जानती हैं

ये युवतियां।

चाहिए जल की तरलता, शीतलता

किन्तु आग पर सिंक कर

पकते हैं घट

ये बात जानती हैं

केवल, ये युवतियां।