और भी ग़म हैं मुहब्बत के सिवा

समझ नहीं पाते हैं

कि धरा पर

ये कैसे प्राणी रहते हैं

ज़रा-सा पास-पास बैठे देखा नहीं

कि इश्क, मुहब्ब्त, प्यार के

चर्चे होने लगते हैं।

तोता-मैना

की कहानियां बनाने लगते हैं।

अरे !

क्या तुम्हारे पास नहीं हैं

जिन्दगी के और भी मसले

जिन्हें सुलझाने के लिए

कंधे से कंधा मिलाकर चलना पड़ता है,

सोचना-समझना पड़ता है।

देखो तो,

मौसम बदल रहा है

निकाल रहे हो न तुम

गर्म कपड़े, रजाईयां-कम्बल,

हमें भी तो नया घोंसला बनाना है,

तिनका-तिनका जमाना है,

सर्दी भर के लिए भोजन जुटाना है।

बच्चों को उड़ना सिखाना है,

शिकारियों से बचना बताना है।

अब

हमारी जिन्दगी के सारे फ़लसफ़े तो

तुम्हारी समझ में आने से रहे।

गालिब ने कहा था

ज़माने में

और भी ग़म हैं मुहब्बत के सिवा

और

इश्क ने ग़ालिब निकम्मा कर दिया

बस इतना ही समझाना है !!!!