ओस की बूंदें

अंधेरों से निकलकर बहकी-बहकी-सी घूमती हैं ओस की बूंदें ।

पत्तों पर झूमती-मदमाती, लरजतीं] डोलती हैं ओस की बूंदें ।

कब आतीं, कब खो जातीं, झिलमिलातीं, मानों खिलखिलातीं

छूते ही सकुचाकर, सिमटकर कहीं खो जाती हैं ओस की बूंदें।