एक नाम और एक रूप हो

एक नाम और एक रूप हो

मन्दिर-मन्दिर घूम रही मैं।

भगवानों को ढूंढ रही मैं।

इसको, उसको, पूछ रही मैं।

कहां-कहां नहीं घूम रही मैं।

तू पालक, तू जगत-नियन्ता

तेरा राज्य ढूंढ रही मैं।

तू ही कर्ता, तू ही नियामक,

उलट-फेर न समझ रही मैं।

नामों की सूची है लम्बी,

किसको पूछूं, किसको पकड़ूं

दिन-भर कितना सोच रही मैं।

रूप हैं इतने, भाव हैं इतने,

किसको पूजूं, परख रही मैं।

सुनती हूं मैं, तू सुनता सबकी,

मेरी भी इक ले सुन,

एक नाम और एक रूप हो,

सबके मन में एक भाव हो,

दुनिया सारी तुझको पूजे,

न हो झगड़ा, न हो दंगा,

अपनी छोटी बुद्धि से

बस इतना ही सोच रही मैं।