एक अजीब भटकाव है मेरी सोच में

एक अजीब भटकाव है मेरी सोच में

मेरे दिमाग में।

आपसे आज साझा करना चाहती हूं।

असमंजस में रहती हूं।

बात कुछ और चल रही होती है

और मैं कुछ और अर्थ निकाल लेती हूं।

अब आज की ही बात लीजिए।

नवरात्रों में

मां की चुनरी की बात हो रही थी

और मुझे होलिका की याद हो आई।

अब आप इसे मेरे दिमाग की भटकन ही तो कहेंगे।

लेकिन मैं क्या कर सकती हूं।

जब भी चुनरी की बात उठती है

मुझे होलिका जलती हुई दिखाई देती है,

और दिखाई देती है उसकी उड़ती हुई चुनरी।

कथाओं में पढ़ा है

उसके पास एक वरदान की चुनरी थी ।

शायद वैसी ही कोई चुनरी

जो हम कन्याओं का पूजन करके

उन्हें उढ़ाते हैं और आशीष देते हैं।

किन्तु कभी देखा है आपने

कि इन कन्याओं की चुनरी कब, कहां

और कैसे कैसे उड़ जाती है।

शायद नहीं।

क्योंकि ये सब किस्से कहानियां

इतने आम हो चुके हैं

कि हमें इसमें कुछ भी अनहोनी नहीं लगती।

देखिए, मैं फिर भटक गई बात से

और आपने रोका नहीं मुझे।

बात तो माता की चुनरी और

होलिका की चुनरी की कर रही थी

और मैं कहां कन्या पूजन की बात कर बैठी।

फिर लौटती हूं अपनी बात की आेर,

पता नहीं होलिका मां थी या नहीं।

किन्तु एक भाई की बहिन तो थी ही

और एक कन्या

जिसने भाई की आज्ञा का पालन किया था।

उसके पास एक वरदानमयी चुनरी थी।

और था एक अत्याचारी भाई।

शायद वह जानती भी नहीं थी

भाई के अत्याचारों, अन्याय को

अथवा प्रह्लाद की ईश्वर भक्ति को।

और अपने वरदान या श्राप को।

लेकिन उसने एक बुरी औरत बनकर

बुरे भाई की आज्ञा का पालन किया।

अग्नि देवता आगे आये थे

प्रह्लाद की रक्षा के लिए।

किन्तु होलिका की चुनरी न बचा पाये,

और होलिका जल मरी।

वैसे भी चुनरी की आेर

किसी का ध्यान ही कहां जाता है

हर पल तो उड़ रही हैं चुनरियां।

और हम !

हमारे लिए एक पर्व हो जाता है

एक औरत जलती है

उसकी चुनरी उड़ती है और हम

आग जलाकर खुशियां मनाते हैं।

देखिए, मैं फिर भटक गई बात से

और आपने रोका नहीं मुझे।

अब आग तो बस आग होती है

जलाती है

और जिसे बचाना हो बचा भी लेती है।

अब देखिए न, अग्नि देव ले आये थे

सीता को ले आये थे सुरक्षित बाहर,

पवित्र बताया था उसे।

और राम ने अपनाया था।

किन्तु कहां बच पाई थी उसकी भी चुनरी

घर से बेघर हुई थी अपमानित होकर

फिर मांगा गया था उससे पवित्रता का प्रमाण।

और वह समा गई थी धरा में

एक आग लिए।

कहते हैं धरा के भीतर भी आग है।

आग मेरे भीतर भी धधकती है।

देखिए, मैं फिर भटक गई बात से

और आपने रोका नहीं मुझे।