उतर कभी धरा पर

अक्सर मन करता है

पूछूं चांद से

कहीं दूर

गगन में चमकता है

उतर कभी धरा पर

फिर देख कैसे

अंधेरा लीलता है,

भरपूर रोशनी में भी

कैसे अंधेरा बोलता है।