इक फूल-सा ख्वाबों में

जब भी
उनसे मिलने को मन करता है

इक फूल-सा ख्वाबों में
खिलता नज़र आता है।

पतझड़ में भी
बहार की आस जगती है
आकाश गंगा में
फूलों का झरना नज़र आता है।

फूल तो खिले नहीं
पर जीवन-मकरन्द का
सौन्दर्य नज़र आता है।

तितलियों की छोटी-छोटी उड़ान में
भावों का सागर
चांद पर टहलता नज़र आता है।

चिड़िया की चहक में
न जाने कितने गीत बजते हैं
उनके मिलन की आस में
मन गीत गुनगुनाता नज़र आता है।

सांझ ढले
जब मन स्मृतियों के साये में ढलता है
तब लुक-छुप करती रंगीनियों में
मन बहकता नज़र आता है।

जब-जब तेरी स्मृतियों से
बच निकलने की कोशिश की
मन बहकता-सा नज़र आता है।