इक नल लगवा दे भैया

कहां है अब पनघट

कहां है अब कृष्ण कन्हैया

क्यो इन सबमें

अब उलझा है मन दैया

इतना ही है तू

कृष्ण कन्हैया

तो मेरे घर में

इक नल लगवा दे भैया।

युग बदल गया

तू भी अपना यह वेश बदल,

न छेड़ बैठना किसी को

गोपी समझ के

कारागार के द्वार खुले हैं दैया।

गीत-संगीत सब बदल गये

रास-बिहारी खिसक गये

ढोल की ताल अब बहक गई

रास-बिहारी चले गये

किचन में कितना काम पड़ा है मैया

इतना ही है तू

कृष्ण कन्हैया

तो अपनी अंगुली से

मेरे घर के सारे काम

करवा दे रे भैया।

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