आशाओं का जाल

जो है वह नहीं,

जो नहीं है,

उसकी ही प्रतीक्षा में

विचलित रहता है मन।

शिशि‍र में ग्रीष्म ,

और ग्रीष्‍म में चाहिए झड़ी।

जी जलता है आशाओं के जाल में।

देता है जीवन दिल खोलकर, 

बस हम पकड़ते ही नहीं।

पकड़ते नहीं जीवन के

लुभावने पलों को ।

एक मायावी संसार में जीते हैं,

और-और की आस में।

और इस और-और की आस में,

जो मिला है

उसे भी खो बैठते हैं।

आत्‍माओं का मिलन चाहते हैं,

और सम्‍बन्‍धों को संवारते नहीं।