आदरणीय गणेश जी,सादर प्रणाम !

आपसे मन की बात कहना चाहती हूं। वैसे तो बहुत से भगवान हैं, शायद 33 करोड़, या उससे भी अधिक, किन्तु आजकल गणेश-चतुर्थी की धूम है, आप घर-घर पधारे हैं, इसलिए अपने मन की दुविधा आपके ही साथ बांटना चाहती हूं।

हमारे देश में पिछले कुछ वर्षों से भगवानों की महिमा बहुत बढ़ गई है। आप भी उनमें से एक हैं।

मेरे न्यूनतम् ज्ञान के अनुसार  1893 के पहले गणपति उत्सव केवल घरों तक ही सीमित था  श्री बाल गंगाधर तिलक ने 1893 में अंग्रेजों के विरूद्ध भारतीयों को  स्वाधीनता संग्राम से जोड़ने के लिए महाराष्ट्र में इस उत्सव को माध्यम बनाया था। इस कथा से मुझे यह ज्ञान प्राप्त हुआ कि आपने और  आपके उत्सव ने भी हमें स्वाधीन करवाने में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।

आपके एक उत्सव ने देश को स्वाधीनता की राह प्रदान की थी। नमन करती हूं आपको।  

एक अन्य कथा के अनुसार आपने सिंधु नामक दानव का वध करने के लिए मयूर को अपने वाहन के रूप में चुना था और  छ: भुजाओं वाला अवतार धारण किया था। इसी कारण गणपति बप्पा मोरया अगले  बरस तू जल्दी आ का जयकारा लगाया जाता है।

उस काल में आपके एक स्वरूप ने ही कितने बड़े कार्य कर दिये,  वर्तमान में भारत को स्‍वाधीन करने में अपना महत्‍त योगदान दिया, अब तो हर वर्ष आप लाखों-लाखों की संख्या में अवतरित होते हैं, आपको नहीं लगता कि अभी भी इस देश में आपके कुछ ऐसे रूपों की आवश्यकता है जो कुछ सकारात्मक परिवर्तन लेकर आयें।  देश भ्रष्टाचार, आतंकवाद, जाति-पाति, घूसखोरी, छल-कपट, और न जाने कितनी ऐसी समस्‍याओं से जूझ रहा है जो देश को प्रगति के पथ पर बढ़ने से रोक रही हैं। जब आप हर वर्ष आते हैं, इन समस्याओं की ओर आपका ध्यान नहीं जाता ? दस दिन तक वेद-व्यास के  महाभारत की तरह कथा तो पूरी सुन लेते हैं फिर विसर्जित होकर चले जाते हैं।

यह मान्यता भी है कि वेद व्यास जी ने महाभारत की कथा भगवान गणेश जी को गणेश चतुर्थी से लेकर अनन्त चतुर्थी तक लगातार 10 दिन तक सुनाई थी। जब वेद व्यास जी ने कथा पूरी कर अपनी आंखें खोली तो उन्‍होंने देखा कि लगातार 10 दिन से कथा यानी ज्ञान की बातें सुनते-सुनते गणेश जी का तापमान बहुत ही अधिक बढा गया है, अत: उन्होंने आपको  कुंड में डुबकी लगवाई, जिससे आपके शरीर का तापमान कम हुआ।

इसलिए मान्‍यता ये है कि गणेश स्‍थापना के बाद से अगले 10 दिनों तक भगवान गणपति लोगों की इच्‍छाऐं सुन-सुनकर इतना गर्म हो जाते हैं, कि चतुर्दशी को बहते जल, तालाब या समुद्र में विसर्जित करके उन्‍हें फिर से शीतल यानी ठण्‍डा किया जाता है।

आपके नाम से जब कोई गोबर गणेश अथवा मिट्टी का माधो कहकर व्यंग्य करता है तो मुझे बिल्कुल भी अच्छा नहीं लगता। फिर अब तो आपके नाम से धर्म के नाम से कितना जल-प्रदूषण फैलाया जा रहा है, देख ही रहें होंगे आप !!

ओहो ! भूल हो गई गणेश जी। क्षमा !!

जब हमारा ही ध्यान नहीं है तो आपका ध्यान कैसे जायेगा। आह्वान  तो हमें करना होगा न अपने भीतर से, अपने भाव से, अपनी क्षमता से, तभी तो आपको ज्ञात होगा कि करना क्या है। और यह तो आप समझा नहीं सकते, हमें स्वयं ही समझना होगा।

किसी परिवर्तन के लिए दस दिन कम नहीं होते।

काश ! अगले वर्ष आपके आगमन एवं विसर्जन के बीच हम यह सब समझ सकें और एक सकारात्मक परिवर्तन की ओर अग्रसर हो सकें।

प्रणाम्