आगजनी में अपने ही घर जलते हैं

जाने क्यों नहीं समझते, आगजनी में अपने ही घर जलते हैं

न हाथ सेंकना कभी, इस आग में अपनों के ही भाव मरते हैं

आओ, मिल-बैठकर बात करें, हल खोजें ‘गर कोई बात है

जाने क्यों आजकल बिन सोचे-समझे हम फै़सले करते हैं