अंधेरों से जूझता है मन

गगन की आस हो या चांद की,

धरा की नज़दीकियां छूटती नहीं।

मन उड़ता पखेरु-सा,

डालियों पर झूमता,

संजोता ख्वाब कोई।

अंधेरों से जूझता है मन,

संजोता है रोशनियां,

दूरियां कभी सिमटती नहीं,

आस कभी मिटती नहीं।

चांद है या ख्वाब कोई।

रोशनी है आस कोई।