अंधविश्वासों में जीते

कौओं की पंगत लगी

बैठे करें विचार

क्यों न हम सब मिलकर करें

इस मानव का बहिष्कार

किसी पक्ष में हमको पूजे

कभी उड़ायें पत्थर मार।

यूं कहते मुझको काला-काला,

मेरी कां-कां चुभती तुमको

मनहूस नाम दिया है मुझको

और अब मैं तुमको लगता प्यारा।

मुझको रोटी तब डाले हैं

जब तुम पर शामत आन पड़ी,

बासी रोटी, तैलीय रोटी

तुम मुझको खिलाते हो।

अपने कष्ट-निवारण के लिए

मुझे ढूंढते भागे हो।

किसी-किसी के नाम पर

हमें लगाते भोग

अंधविश्वासों में जीते

बाबाओं  के चाटें तलवे

मिट्टी में होते हैं लोट-पोट।

जब ज़िन्दा होता है मानव

तब क्या करते हैं ये लोग।

न चाहिए मुझको तेरी

दान-दक्षिणा, न पूजी रोटी।

मुंडेर तेरी पर कां-कां करता

बच्चों का मन बहलाता हूं।

अपनी मेहनत की खाता हूं।