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सपने तो सपने होते हैं
कब-कब अपने होते हैं
आँखो में तिरते रहते हैं
बातों में अपने होते हैं।
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जब आग लगती है
किसी आग में घर उजड़ते हैं ।
कहीं किसी के भाव जलते हैं ।
जब आग लगती है किसी वन में
मन के संताप उजड़ते हैं ।
शेर-चीतों को ले आये हम
अभयारण्य में ।
कोई बताये मुझे
क्या कहूं उस चिडि़या से,
किसी वृक्ष की शाख पर,
जिसके बच्चे पलते हैं ।
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दीप तले अंधेरे की बात करते हैं
सूरज तो सबका है,
सबके अंधेरे दूर करता है।
किन्तु उसकी रोशनी से
अपना मन कहां भरमाता है ।
-
अपनी रोशनी के लिए,
अपने गुरूर से
अपना दीप प्रज्वलित करते है।
और अंधेरा मिटाने की बात करते हैं।
-
फिर भी अक्सर
न जाने क्यों
दीप तले अंधेरे की बात करते हैं।
-
तो हिम्मत करें,
हाथ पर रखें लौ को
तब जग से
तम मिटाने की बात करते हैं।
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मदमाता शरमाता अम्बर
रंगों की पोटली लेकर देखो आया मदमाता अम्बर ।
भोर के साथ रंगों की पोटली बिखरी, शरमाता अम्बर ।
रवि को देख श्वेताभा के अवगुंठन में छिपता, भागता।
सांझ ढले चांद-तारों संग अठखेलियां कर भरमाता अम्बर।
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छोटी रोशनियां सदैव आकाश बड़ा देती हैं
छोटी-सी है अर्चना,
छोटा-सा है भाव।
छोटी-सी है रोशनी।
अर्पित हैं कुछ फूल।
नेह-घृत का दीप समर्पित,
अपनी छाया को निहारे।
तिरते-तिरते जल में
भावों का गहरा सागर।
हाथ जोड़े, आंख मूंदे,
क्या खोया, क्या पाया,
कौन जाने।
छोटी रोशनियां
सदैव आकाश बड़ा देती हैं,
हवाओं से जूझकर
आभास बड़ा देती हैं।
सहज-सहज
जीवन का भास बड़ा देती हैं।
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जीवन में यह उलट-पलट होती है
बहुत छोटी हूं मैं
कुछ समझने के लिए।
पर
इतनी छोटी भी तो नहीं
कि कुछ भी समझ न आये।
मेरे आस-पास लोग कहते हैं
हर औरत मां होती है
बहन होती है,पत्नी होती है
बेटी और सखा होती है।
फिर मुझे देखकर कहते हैं
देखो,कष्टों में भी मुस्कुरा लेती है
ममतामयी, देवी है देवी।
मुझे नहीं पता
औरत क्या, मां क्या,
बेटी क्या, बहन क्या, देवी क्या
और ममता क्या होती है।
मुझे नहीं पता
मेरी गोद यह में कौन है
बेटा है, भाई है
पति है, या कोई और।
बहुत सी बातें
नहीं समझ पाती हूं
और जो समझ जाती हूं
वह भी कहां समझ पाती हूं।
लोग कहते हैं, देखो
भाई की देख-भाल करती है।
बड़ा होकर यही तो है
इसकी रक्षा करेगा
राखी बंधवायेगा, हाथ पीले करेगा,
अपने घर भेजेगा।
कोई समझायेगा मुझे
जीवन में यह उलट-पलट कैसे होती है।
बहुत सी बातें
नहीं समझ पाती हूं
और जो समझ जाती हूं
वह भी कहां समझ पाती हूं।
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रात से सबको गिला है
रात और चांद का अजीब सा सिलसिला है
चांद तो चाहिए पर रात से सबको गिला है
चांद चाहिए तो रात का खतरा उठाना होगा
चांद या अंधेरा, देखना है, किसे क्या मिला है
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कौन से रिश्ते अपने, कौन से पराये
हम रह-रहकर मरम्मत करवाते रहे
लोग टूटी छतें आजमाते रहे।
दरारों से झांकने में
ज़माने को बड़ा मज़ा आता है
मौका मिलते ही दीवारें तुड़वाते रहे।
छत तक जाने के लिए
सीढ़ियां चिन दी
पर तरपाल डालने से कतराते रहे।
कब आयेगी बरसात, कब उड़ेंगी आंधियां
ज़िन्दगी कभी बताती नहीं है
हम यूं ही लोगों को समझाते रहे।
कौन से रिश्ते अपने, कौन से पराये
उलझते रहे हम यूं ही इन बातों में
पतंग के उलझे मांझे सुलझाते रहे
अपनी उंगलियां यूं ही कटवाते रहे।
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हाय-हैल्लो मत कहना
यूं क्यों ताड़ रहा है
टुकुर-टुकुर तू मुझको
मम्मी ने मेरी बोला था
किसी लफड़े में मत आ जाना
रूप बदलकर आये कोई
कहे मैं कान्हा हूं
उसको यूं ही
हाय-हैल्लो मत कहना
देख-देख मैं कितनी सुन्दर
कितने अच्छे मेरे कपड़े
हाअअ!!
तेरी मां ने तुझको कैसे भेजा
हाअअ !!
हाय-हाय, मैं शर्म से मरी जा रही
तेरी कुर्ती क्या मां ने धो दी थी
जो तू यूं ही चला आया
हाअअ!!
जा-जा घर जा
अपनी कुर्ती पहनकर आ
फिर करना मुझसे बात।
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चाहतों का अम्बार दबा है
मन के भीतर मन है, मन के भीतर एक और मन
खोल खोल कर देखती हूं कितने ही तो हो गये मन
इस मन के किसी गह्वर में चाहतों का अम्बार दबा है
किसको रखूं, किसको छोड़ूं नहीं बतलाता है रे मन।
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करें किससे आशाएँ
मन में चिन्ताएँ सघन
मानों कानन में अगन
करें किससे आशाएँ
कैसे बुझाएँ ये तपन