Share Me
सपने तो सपने होते हैं
कब-कब अपने होते हैं
आँखो में तिरते रहते हैं
बातों में अपने होते हैं।
Share Me
Write a comment
More Articles
तलाश
वे और थे
जो मंज़िल की तलाश में
भटका करते थे।
आज तो
मंज़िल मेरी तलाश में है।
क्योंकि
मंज़िल तक
कोई पहुंचता ही नहीं।
Share Me
कृष्ण ने किया था शंखनाद
महाभारत की कथा
पढ़कर ज्ञात हुआ था,
शंखनाद से कृष्ण ने किया था
एक ऐसे युद्ध का उद्घोष,
जिसमें करोड़ों लोग मरे थे,
एक पूरा युग उजड़ गया था।
अपनों ने अपनों को मारा था,
उजाड़े थे अपने ही घर,
लालसा, मोह, घृणा, द्वेष, षड्यन्त्र,
चाहत थी एक राजसत्ता की।
पूरी कथा
बार-बार पढ़ने के बाद भी
कभी समझ नहीं पाई
कि इस शंखनाद से
किसे क्या उपलब्धि हुई।
-
यह भी पढ़ा है,
कि शंखनाद की ध्वनि से,
ऐसे अदृश्य
जीवाणु भी नष्ट हो जाते हैं
जो यूं
कभी नष्ट नहीं किये जा सकते।
इसी कारण
मृत देह के साथ भी
किया जाता है शंखनाद।
-
शुभ अवसर पर भी
होता है शंखनाद
क्योंकि
जीवाणु तो
हर जगह पाये जाते हैं।
फिर यह तो
काल की गति बताती है,
कि वह शुभ रहा अथवा अशुभ।
-
एक शंखनाद
हमारे भीतर भी होता है।
नहीं सुनते हम उसकी ध्वनियां।
एक आर्तनाद गूंजता है और
बढ़ते हैं एक नये महाभारत की ओेर।
Share Me
दुनिया मेरी मुट्ठी में
बहुत बड़ा है जगत,
फिर भी कुछ सीढ़ियां चढ़कर
एक गुरूर में
अक्सर कह बैठते हैं हम
दुनिया मेरी मुट्ठी में।
सम्बन्ध रिस रहे हैं,
भाव बिखर रहे हैं,
सांसे थम रही हैं,
दूरियां बढ़ रही हैं।
अक्सर विपदाओं में
साथ खड़े होते हैं,
किन्तु यहां सब मुंह फेर पड़े हैं।
सच कहें तो लगता है,
न तेरे वश में, न मेरे वश में,
समझ से बाहर की बात हो गई है।
समय पर चेतते नहीं।
अब हाथ जोड़ें,
या प्रार्थनाएं करें,
बस देखते रहने भर की बात हो गई है।
Share Me
आंखों देखी दुनिया
कथा है
कि मिट्टी खाने पर
यशोदा ने कृष्ण को
मुँह खोलकर
दिखाने के लिए कहा था
और यशोदा ने
कृष्ण के मुँह में
ब्रह्माण्ड के दर्शन किये थे।
कुछ ऐसा ही ब्रह्माण्ड
हमारी आंखों के भीतर भी है
जिसे हम देख नहीं पाते,
किसी और को क्या दिखाना
हम स्वयं ही
समझ भी नहीं पाते।
बड़ी प्रचलित कहावत है
आंखों देखी दुनिया।
किन्तु आश्चर्य कि
हम दुनिया को
कभी भी खुली आंखों से
देख नहीं पाते।
जब भी दुनिया को समझना होता है
हम आंखें बन्द कर लेते हैं
और शिकायत करते हैं
हमारी समझ से बाहर है यह दुनिया।
Share Me
ये औरतें
हर औरत के भीतर एक औरत है
और उसके भीतर एक और औरत।
यह बात स्वयं औरत भी नहीं जानती
कि उसके भीतर
कितनी लम्बी कड़ी है इन औरतों की।
धुरी पर घूमती चरखी है वह
जिसके चारों ओर
आदमी ही आदमी हैं
और वह घूमती है
हर आदमी के रिश्ते में।
वह दिखती है केवल
एक औरत-सी,
सजी-धजी, सुन्दर , रंगीन
शेष सब औरतें
उसके चारों ओर
टहलती रहती हैं,
उसके भीतर सुप्त रहती हैं।
कब कितनी औरतें जाग उठती हैं
और कब कितनी मर जाती हैं
रोज़ पैदा होती हैं कितनी नई औरतें
उसके भीतर
यह तो वह स्वयं भी नहीं जानती।
लेकिन,
ये औरतें संगठित नहीं हैं
लड़ती-मरती हैं,
अपने-आप में ही
अपने ही अन्दर।
कुछ जन्म लेते ही
दम तोड़ देती हैं
और कुछ को
वह स्वयं ही, रोज़, हर रोज़
मारती है,
वह स्वयं यह भी नहीं जानती।
औरत के भीतर सुप्त रहें
भीतर ही भीतर लड़ती-मरती रहें
जब तक ये औरतें,
सिलसिला सही रहता है।
इनका जागना, संगठित होना
खतरनाक होता है समाज के लिए
और, खतरनाक होता है
आदमी के लिए।
जन्म से लेकर मरण तक
मरती-मारती औरतें
सुख से मरती हैं।
Share Me
जल-विभाग इन्द्र जी के पास
मेरी जानकारी के अनुसार
जल-विभाग
इन्द्र जी के पास है।
कभी प्रयास किया था उन्होंने
गोवर्धन को डुबाने का
किन्तु विफ़ल रहे थे।
उस युग में
कृष्ण जी थे
जिन्होंने
अपनी कनिष्का पर
गोवर्धन धारण कर
बचा लिया था
पूरे समाज को।
.
किन्तु इन्द्र जी,
इस काल में कोई नहीं
जो अपनी अंगुली दे
समाज हित में।
.
इसलिए
आप ही से
निवेदन है,
अपने विभाग को
ज़रा व्यवस्थित कीजिए
काल और स्थान देखकर
जल की आपूर्ति कीजिए,
घटाओं पर नियन्त्रण कीजिए
कहीं अति-वृष्टि
कहीं शुष्कता को
संयमित कीजिए
न हो कहीं कमी
न ज़्यादती,
नदियाँ सदानीरा
और धरा शस्यश्यामला बने,
अपने विभाग को
ज़रा व्यवस्थित कीजिए।
Share Me
अन्तर्मन की आग जला ले
अन्तर्मन की आग जला ले
उन लपटों को बाहर दिखला दे।
रोना-धोना बन्द कर अब
क्यों जिसका जी चाहे कर ले तब।
सबको अपना संसार दिखा ले
अपनी दुनिया आप बसा ले।
ठोक-बजाकर जीना सीख
कर ले अपने मन की रीत।
कोई नहीं तुझे जलाता
तेरी निर्बलता तुझ पर हावी
अपनी रीत आप बना ले।
पाखण्डों की बीन बजा देे
मनचाही तू रीत कर ले।
इसकी-उसकी सुनना बन्द कर
बेचारगी का ढोंग बन्द कर।
दया-दया की मांग मतकर
बेबस बन कर जीना बन्द कर।
अपने मन के गीत बजा ले।
घुटते-घुटते रोना बन्द कर
रो-रोकर दिखलाना बन्द कर
इसकी-उसकी सुनना बन्द कर।
अपने मन से जीना सीख।
अन्तर्मन की आग जला ले।
उन लपटों को बाहर दिखला दे।
Share Me
हर चीज़ मर गई अगर एहसास मर गया
मेरी आंखों के सामने
एक चिड़िया तार में फंसी,
उलझी-उलझी,
चीं-चीं करती
धीरे-धीरे मरती रही,
और हम दूर खड़े बेबस
शायद तमाशबीन से
देख रहे थे उसे
वैसे ही
धीरे-धीरे मरते।
तभी
चिड़ियों का एक दल
कहीं दूर से
उड़ता आया,
और उनकी चिड़चिडाहट से
गगन गूंज उठा,
रोंगटे खड़े हो गये हमारे,
और दिल दहल गया।
उनके प्रयास विफ़ल थे
किन्तु उनका दर्द
धरा और गगन को भेदकर
चीत्कार कर उठा था।
कुछ देर तक हम
देखते रहे, देखते रहे,
चिड़िया मरती रही,
चिड़ियां रूदन करती रहीं,
इतने में ही
कहीं से एक बाज आया,
चिड़ियों के दल को भेदता,
तार में फ़ंसी चिड़िया के पैर खींचे
और ले उड़ा,
कुछ देर चर्चा करते रहे हम।
फिर हम भीतर आकर
टी. वी. पर
दंगों के समाचारों का
आनन्द लेने लगे।
क्रूरता की कोई सीमा नहीं ।
हर चीज़ मर गई
अगर एहसास मर गया।
Share Me
लौटाकर खड़ा कर दिया शून्य पर
अभिमान
अपनी सफ़लता पर।
नशा
उपलब्धियों का।
मस्ती से जीते जीवन।
उन्माद
अपने सामने सब हेठे।
घमण्ड ने
एक दिन लौटाकर
खड़ाकर दिया
शून्य पर।
Share Me
तुम्हारा अंहकार हावी रहा मेरे वादों पर
जीवन में सारे काम
सदा
जल्दबाज़ी से नहीं होते।
कभी-कभी
प्रतीक्षा के दो पल
बड़े लाभकारी होते हैं।
बिगड़ी को बना देते हैं
ठहरी हुई
ज़िन्दगियों को संवार देते हैं।
समझाया था तुम्हें
पर तुम्हारा
अंहकार हावी रहा
मेरे वादों पर।
मैंने कब इंकार किया था
कि नहीं दूंगी साथ तुम्हारा
जीवन की राहों में।
हाथ थामना ही ज़रूरी नहीं होता
एक विश्वास की झलक भी
अक्सर राहें उन्मुक्त कर जाती है।
किन्तु
तुम्हारा अंहकार हावी रहा,
मेरे वादों पर।
अब न सुनाओ मुझे
कि मैं अकेले ही चलता रहा।
ये चयन तुम्हारा था।