गलत और सही

कहते हैं

अन्त सही तो सब सही।

किन्तु मेरे गले ऐसे

बोध-भाव नहीं उतरते।

शायद जीवन की कड़वाहटें हैं

या कुछ और।

किन्तु यदि

प्रारम्भ सही न हो तो

अन्त कैसे हो सकता है सही।