सलवटें

कपड़ों पर पड़ी सलवटें
कोशिश करते रहने से
कभी छूट भी जाती हैं,
किन्तु मन पर पड़ी
अदृश्य सलवटों का क्या करें,
जिन्हें निकालने की कोशिश में
आंखें 
नम हो जाती हैं,
वाणी बिखर जाती हैं,
कपड़ों पर घूमती अंगुलियों में
खरोंच आ जाती है।
कपड़े 
तह-दर-तह 
सिमटते रहते हैं
और मैं बिखरती रहती हूॅं।